घर की इक इक भुटटी पे भक्ति का समान मिले,
इतनी भगति हो जाये अंत में शिरडी धाम मिले,
ऐसी लगन लगा दे तू उठ उठ कर मैं रातो को,
कभी मैं पकडू माला को कभी मैं जोडू हाथो को,
साई तुम्हरी माला बिन इक पल भी न आराम मिले,
इतनी भगति हो जाये अंत में शिरडी धाम मिले,
भुला के खुद की हस्ती को ये तस्वीर स्वारू मैं
भुला दू घर के दर्पण को तेरी और निहारी मैं,
इक पल न झपके अखियां इनको ऐसा ध्यान मिले,.
इतनी भगति हो जाये अंत में शिरडी धाम मिले,
कितनी भगति करता हु मेरे दिल से भूलना तू,
कितनी भगति बाकी हिअ उसको याद दिलाना तू,
इक पल ध्यान हटे न मेरा मुझको ऐसा ज्ञान मिले,
इतनी भगति हो जाये अंत में शिरडी धाम मिले,
भक्ति कम पड़ जाये तो जीवन और बड़ा देना,
इसी जन्म में साई जी सूरत अपनी दिखा देना,
तेरा दर्शन कर पाउ इतना मुझे सोभाग्ये मिले,
इतनी भगति हो जाये अंत में शिरडी धाम मिले,