जिंदगी में हजारो का मेला जुड़ा,
हंस जब भी उड़ा अकेला उड़ा,
राज राजा रहे न वो रानी रही,
न भूड़ापा रहा न जवानी रही,
चार दिन का जगत में यमेला रहा,
हंस जब भी उड़ा अकेला उड़ा,
ठाठ सब पड़े के पड़े रह गये,
सारे धन व के घड़े के घड़े रह गये,
अंत में लखपति के न ढेला चला,
हंस जब भी उड़ा अकेला उड़ा,
वेबसो को सताने से क्या फयादा,
दिल किसी का दुखाने से क्या फयादा,
नीम के साथ जैसे करेला जुड़ा,
हंस जब भी उड़ा अकेला उड़ा,