बरसाना बरसाना, हो...
प्रेमी भक्तो का है यह पागलखाना
राधा नाम के पागल राधा गुण गाएं
जग की नहीं परवाह मुक्ति को ठुकराएं
बरसाने की भूमि, हो...
सब धामो की मुकट मणि, मनमोहन ने चूमी
बरसाने में विहरत जहां वृषभानु लली
मुकुट से देत बुहारी मोहन उसी गली
बरसाना बरसाए, हो...
पात्र अपात्र को भी राधा प्रेम सो सरसाए
राधा दामिनी के संग जहां घनश्याम रहे
इसी लिए बरसाना याको वेद कहे
हुआ चंचल ब्रह्म अचल, हो...
शीश धरे राधा, कहे जयति जयति हर पल
पूर्ण ब्रह्मा जो वेदो में कहलाता है
भानु लली के निसदिन चरण दबाता है
जो भी राधा गुण गाए, हो...
रीझ के मनमोहन वाके हाथो में बिक जाए
जो भी राधा राधा राधा नाम कहे
राधा नाम दीवाना वाके संग रहे
बरसाना बरसादो, हो...
शरण में आए हैं, इक झलक तो दिखला दो
बरसाने वारी के दर्शन करवादो
हे बरसाना हमपे करुणा बरसादो
राधा राधा राधा राधा नाम कहो
रमण बिहारी के चरणन के निकट रहो