दुनिया से मैं हारा हूँ, तक़दीर का मारा हूँ,
जैसा भी हूँ अपना लो, मैं बालक तुम्हारा हूँ ।
पापों की गठरी ले फिरता मारा मारा,
नहीं मिलती है मंजिल,नहीं मिलता किनारा,
नहीं कोई ठिकाना है,मैं तो बेरसहारा हूँ,
जैसा भी हूँ अपना लो,
मैं बालक तुम्हारा हूँ ।
दुनिया से जो माँगा मिलती रुसवाई है,
तेरे दर पे सुनते हैं होती सुनवाई है,
दुःख दूर करो मेरे,मैं भी दुखियारा हूँ,
जैसा भी हूँ अपना लो,
मैं बालक तुम्हारा हूँ ।
कोशिश करते करते नहीं नांव चला पाया,
आखिर में थक करके तेरे द्वार पे हूँ आया,
इस श्याम को तारो प्रभु,तुझे दिल से पुकारा हूँ,
जैसा भी हूँ अपना लो,
मैं बालक तुम्हारा हूँ ।
दुनिया से मैं हारा हूँ,
तक़दीर का मारा हूँ ।
भजन गायक - सौरभ मधुकर