तेरे दर पे मुकद्दर आज़माने मैं भी आया हूँ
के हाल दिल तुम्हे सुनाने दाती मैं भी आया हूँ
तिलक करती चन्दन से, कभी केसर से कुमकुम से
जिगर के खून से टीका लगाने मैं भी आया हूँ
तेरे दर पे मुकद्दर आज़माने मैं भी आया हूँ...
कोई चूड़ा, कोई चुनरी, कोई चोला करे अर्पण
मेरी पूँजी है बस आंसू, लुटाने मैं भी आया हूँ
तेरे दर पे मुकद्दर आज़माने मैं भी आया हूँ...
नहीं सोना, नहीं चांदी, जो तुमको भेंट कर पाऊं
तेरे चरणों में सर अपना चढ़ाने मैं भी आया हूँ
तेरे दर पे मुकद्दर आज़माने मैं भी आया हूँ...
ना जानु ध्यान जप-तप मैं, ना जानु ज्ञान और भक्ति
तुम्हे श्रद्धा के फूलों से रिझाने मैं भी आया हूँ
तेरे दर पे मुकद्दर आज़माने मैं भी आया हूँ...
दिए जो दर्द गारों ने, मिले जो जखम अपनों से
निशा जख्मो के तुमको माँ दिखने मैं भी आया हूँ
तेरे दर पे मुकद्दर आज़माने मैं भी आया हूँ...
माँ अपने ‘दास’ नादां से यूँ कब तक रूठ पाओगी
यकीं है तेरी रेहमत पर, मनाने मैं भी आया हूँ
तेरे दर पे मुकद्दर आज़माने मैं भी आया हूँ...