ढीली करो धनुष की डोरी,तरकस का कस खोलो..
किसने कहा युद्ध की बेला गयी,शांति से बोलो ?
किसने कहा,और मत बेधो ह्रदय वहिन के शर से..
भरो भुवन का अंग कुसुम से,कुमकुम से,केशर से ?
कुमकुम ? लेपूं किसे? सुनाऊं किसको कोमल गान ?
तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान !
फूलों की रंगीन लहर पर ओ उतराने वाले !
ओ रेशमी नगर के वासी ! ओ छवि के मतवाले !
सकल देश में हालाहल है,दिल्ली में हाला है..
दिल्ली में है रौशनी,शेष भारत अंधियाला है !!
मखमल के पर्दों के बाहर,फलों के उस पार..
ज्यों का त्यों है खड़ा आज भी मरघट सा संसार !!
वह संसार जहाँ पर पहुँची,अब तक नहीं किरण है..
जहाँ क्षितिज है शून्य,अभी तक अम्बर तिमिर वरन है..
देख जहाँ का दृश्य आज भी अंतस्तल हिलता है..
माँ को लज्जा-वसन और शिशु को क्षीर नहीं मिलता है !
पूछ रहा है जहाँ चकित हो जन-जन देख अकाज..
सात वर्ष हों गए,राह में अटका कहाँ स्वराज !!
अटका कहाँ स्वराज ? बोल दिल्ली ! तू क्या कहती है ?
तू रानी बन गयी,वेदना जनता क्यों सहती है ?
सबके भाग दबा रक्खे हैं,किसने अपने कर में ?
उतरी थी जो विभा,हुई बंदिनी बता किस घर में ?
समर शेष है,वह प्रकाश बंदी-गृह से छुटेगा..
और नहीं तो तुझ पर पापिनी ! महावज्र टूटेगा !!
समर शेष है,इस स्वराज्य को सत्य बनाना होगा..
जिसका है यह न्यास,उसे सत्वर पहुंचाना होगा !!
स्वर : माधुरी मिश्रा
रचनाकार : रामधारी सिन्ह 'दिनकर'