घोर अंधकार हो चल रही बयार हो

घोर अंधकार हो,चल रही बयार हो..
आज द्वार-द्वार पर यह दिया बुझे नहीं..
यह निशीथ का दिया ला रहा विहान है !!

शक्ति का दिया हुआ,शक्ति को दिया हुआ..
भक्ति से दिया हुआ,यह स्वतंत्रता दिया..
रुक रही न नाव हो,जोर का बहाव हो..
आज गंग-धार पर यह दिया बुझे नहीं !
यह स्वदेश का दिया प्राण  के समान है !!

यह अतीत कल्पना,यह विनीत प्रार्थना ..
यह पुनीत भावना,यह अनंत साधना..
शांति हो,अशांति हो,युद्ध,संधि,क्रांति हो..
तीर पर,कछार पर,यह दिया बुझे नहीं !
देश पर,समाज पर,ज्योति का वितान है !!

तीन-चार फूल हैं,आस-पास धूल हैं..
बांस हैं,बबूल हैं,घास के दुकूल हैं..
वायु भी हिलोर दे,फूंक दे,झकोर दे..
कब्र पर,मजार पर,यह दिया बुझे नहीं !
यह किसी शहीद का पुण्य प्राण-दान है !!

झूम-झूम बदलियां,चूम-चूम बिजलियां..
आंधियां उठा रहीं,हलचलें मचा रहीं..
लड़ रहा स्वदेश हो,शांति का न लेश हो..
क्षुद्र जीत-हार पर,यह दिया बुझे नहीं !
यह स्वतंत्र भावना का स्वतंत्र गान है !!

स्वर : माधुरी मिश्रा
रचनाकार : अज्ञात
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