तुम्हीं जब याद की टीसें भुलाते हो..
भला फिर प्यार का अभिमान क्यों जीए ?
तुम्हीं बलिदान का मंदिर गिराते हो..
भला फिर अभिसार का मेहमान क्यों जीए ?
भुला दीं सूलियां,जैसे जमाने में !
सभी कुछ तालियों से पा लिया तुमने !
न तुम बहले,न युग बहला,भले साथी..
बताओ तो किसे बहला लिया तुमने ?
जरा छोटों से घुल-मिलकर रहो जीवन !
बड़े सब मिट गयें,छोटे सलामत हैं..
बड़ों से डर,जरा छोटों पे मर गाफिल !
बड़ी स्वादिष्ट छोटों की अमानत है !!
तुम्हारी चरण-रेखा देखते हैं वे..
उन्हें भी देखने का तुम समय पाओ !
तुम्हारी आन पर कुर्बान जाते हैं..
अमीरी से जरा नीचे उतर आओ !!
उठो,कारा बनाओ इस गरीबी की..
रहो मत दूर,अपनों के निकट आओ..
बड़े गहरे लगें हैं घाव सदियों के..
मसीहा,इनको ममता भर के सहलाओ !!
स्वर : माधुरी मिश्रा
रचनाकार : माखनलाल चतुर्वेदी