मोहे कुछ भी नहीं सुहावे

मोहे कुछ भी नहीं सुहावे रे कान्हा बंसी वाले रे,

संसार मोहे न भावे तू भी न दर्श दिखावे,
जन गर पे शर्मावे यो कौन मुझे समजावे रे,
मोहे कुछ भी नहीं सुहावे  

तेरे मंदिर तक जाऊ सोचु दर्शन कर आऊ,
दर ते वापिस लोटेयाऊ,
कर मन को बोझ स्तावे रे,कान्हा बंसी वाले
मोहे कुछ भी नहीं सुहावे  

तेरी मोह माया में बोयो मैंने मनुश जन्म युही खोयो,
ना कोई केवट टोयो जो नईया पार लगावे रे कान्हा बंसी वाले,
मोहे कुछ भी नहीं सुहावे  

भगने में ही उम्र गवाई नही तोसे टोर लगाई,
अब रुत चलने की आई,
तेरो राम कृष्ण पछतावे रे कान्हा बंसी वाले
मोहे कुछ भी नहीं सुहावे  
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