मैं खिलौना नही मैं भी इंसान हु,
कौन समजे मुझे मैं परेशान हु,
जख्म दुखता हुआ जिस्म बे जान हु,
कौन समजे मुझे मैं परेशान हु,
कौन पूछे मुझे तेरी मर्जी है क्या,
क्या बजूद तेरा तेरी क्या दासता
रिश्तो को सींच ती फिर भी वीरान हु,
कौन समजे मुझे मैं परेशान हु,
चीखती रूह मेरी और विलखता है मन,
कौन साथ चले कौन दे मेरा संग,
अपनी तल्दीर पे बहुत हैरान हु,
कौन समजे मुझे मैं परेशान हु,
अपने अरमानो को दिल में दफ ना लिया,
आंसू हस के पिए गम को अपना लिया,
मैं मुर्दा हु और मैं ही समसान हु,
कौन समजे मुझे मैं परेशान हु,
रब ने क्या सोच कर नाम इतने दिए,
सोचती रहू क्या मैं अपने लिए,
इतने नाम मेरे फिर भी गुम नाम हु,
कौन समजे मुझे मैं परेशान हु,