सासों की माला पे सिमरू पी का नाम

सांसो की माला पे सिमरूं मैं पि का नाम
अपने मन की मैं जानु और पि के मन की राम

दीन धरम सब छोड़ के मैं तो पि की धुन में खोयी
जित जाऊं गुण पि के गाऊं नाहि दूजा काम

प्रेम पियाला जबसे पिया है जी का है ये हाल
चिंगारों पे नींद आ जाए कांटो पे आराम

प्रीतम तुमरे ही सब है अब अपना राज सुहाग
तुम नाही तो कछु नाही तुम मिले जागे भाग

आ पिया इन नैनन में जो पलक ढांप तोहे लूँ
ना मैं देखूँ गैर को ना तोहे देखन दूँ

ढांप लिया पलकों में तुझको बंद कर लिए नैन
तू मुझको मैं तुझको देखूं गैरों का क्या काम

जीवन का सिंगार है प्रीतम मांग का है सिन्दूर
प्रीतम की नज़रों से गिरके जीना है किस काम

प्रेम के रंग में ऐसी डूबी बन गया एक ही रूप
प्रेम की माला जपते जपते आप बनी मैं श्याम

प्रीतम का कछु दोष नहीं है वो तो है निर्दोष
अपने आप से बातें करके हो गयी मैं बदनाम

वो चातर है कामिनी वो है सुन्दर नार
जिस पगली ने कर लिया साजन का मन राम
नील गगन से भी परे सैंयाजी का गांव
दर्शन जल की कामना पथ रखियो हे राम

अब किस्मत के हाथ है इस बंधन की लाज
मैंने तो मन लिख दिया साँवरिया के नाम
जब से राधा श्याम के नैन हुए हैं चार
श्याम बने हैं राधिका राधा बन गयी श्याम

हाथ छुड़ावत जात हो निर्बल जानके मोहे
हिरदय में से जाओ तब मैं जानु तोहे
काजल डालूँ हो जाए किरकिरी ना रहे बह जाए
जिन नैनन में पि बसे वहाँ दूजा कौन समाए

सांसो की माला पे सिमरूं मैं पि का नाम
प्रेम के पथ पे चलते चलते हो गयी मैं बदनाम
सांसो की माला पे सिमरूं मैं पि का नाम
अपने मन की मैं जानु और पि के मन की राम
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