थक सी गई हु मैं जग को पुकार के,
शरण में आई हु सब कुछ हार के,
आँखों में नींद नहीं दिल भी उदास है,
बिखरे है सपने टूटी हर इक आस है,
भाव है गेहरे पावत अपनों के प्यार के,
शरण में आई हु सब कुछ हार के,
जीवन की बाजी अब तो आप के ही हाथ है,
हारे के साथी बाबा आप दीना नाथ है,
बन जाओ माझी बाबा मेरी मझधार के,
शरण में आई हु सब कुछ हार के,
ख़ताये जो की है मैंने मुझे स्वीकार है,
माफ़ करो भूली मेरी तेरी दरकार है,
गलती के पुतले मोहित हम तो संसार के ,
शरण में आई हु सब कुछ हार के,