मेरा मन मंदिर मेरा मन मस्जिद मैं घर से बहार क्यों जाऊ,
मेरा साई है मेरे कब्जे में मैंने देखा है उसे जग चाहु,
काशी भी याहा काबा भी याहा और शिरडी के बाबा भी यहाँ,
ये कुल की हिफयत करते है फिर क्यों न इनके गुण गाउ,
मेरा मन मंदिर मेरा मन मस्जिद
कभी पास मिला कभी दूर मिला.
साई में हमेशा नूर मिला,
किस्मत के अथेरे गेर मिले
पर अब मैं न कभी गबराऊ
मेरा मन मंदिर मेरा मन मस्जिद
फूल जंगल में भी खिलते है,
बिना मांगे मोती मिलते है,
ये राज मगर न समजो तो फिर कब तक मैं समजाउ
मेरा मन मंदिर मेरा मन मस्जिद