देता जा तू लिख लिख अर्जी,
क्या फल देना साई की मर्जी,
ना ही चलती यहाँ किसी की विनती फ़र्ज़ी,
देता जा तू लिख लिख अर्जी,
उसको खबर है क्या तेरे मन में रे,
जाने वो कितनी खोट तेरी लगन में रे,
उसकी घूमे है नजर दिन भर इधर भी उधर भी,
देता जा तू लिख लिख अर्जी,
श्रद्धा में ना हो कोई दिखावा रे,
पता उसे सच क्या है क्या है छलावा,
वो देखे रे सब तुझको जरा न सबर रे,
देता जा तू लिख लिख अर्जी,
भावना है साँची याहा जिस इंसान की,
नेमते वो उसको देना सारे जहां की,
उसके हाथो में है ओ बन्दे नैया भी भवर भी,
देता जा तू लिख लिख अर्जी,