सतत पर्तीक्षा अप लक रोचन हे भव भादा विपति विलोचन,
इक बार आकर ये कहिये सविकारी विनती सुनिए नाथ हमारी
हिर्शेश्वर हरी हिरदये बिहारी मोर मुकट पिताम्भर धारी,
विनती सुनिए नाथ हमारी............
जन्म जन्म की लगी लगन है
साक्शी तारो भरा गगन है,
गिन गिन स्वास का सुख केह रही है,
आये गे गोवर्धन धारी,
विनती सुनिए नाथ हमारी