रही बक्श्दा तू किते होए कसूर दातिया,
सहनु चरना तो करी न तू दूर दातिया,
असि कपडे नु चढ़े कच्चे रंग वरगे,
असि कच दी बनाई होइ वांग वरगे,
इको झटके च हो जा गे चूर दातिया,
सहनु चरना तो करी न तू दूर दातिया,
इस तन विच जिहने कोने सास वसदे,
हर सास विच लखा ही गुनाह वसदे,
मनो दूर कर मान ते गरूर दातिया,
सहनु चरना तो करी न तू दूर दातिया,
असि पानी उते खींची हो लकीर वरगे,
किसी झाडी विच फसी होइ लीर वर्गी,
हाक सारे यह मंगल हठूर दतिया,
सहनु चरना तो करी न तू दूर दातिया,