मैं एक छोटा सा बालक हुँ साईं,
रस्ता शिर्डी का भुला हुआ हुँ ।
याद आती मुझे शिर्डी की,
इसलिए बाबा रोने लगा हुँ ॥
हर तरफ जुल्म हैं बेबसी हैं,
बेकरारी बड़ी बेकसी हैं ।
आप आकर के रस्ता दिखा दो,
मैं ज़माने में खोने लगा हुँ ॥
मेरे हालात पर अब करर्म कर,
मेरे साईं तू अपनी नज़र कर ।
गम की चादर को ओढे हुए मैं,
सर्द रातों में सोने लगा हुँ ॥
आपका ही सहारा हैं मुझको,
आपको ही पुकारूँगा मैं तो ।
पलकें भींगी है साईं ‘आशिष’ की,
आंसुओ में नहाने लगा हुँ ॥