बैठो उड़न खटोले चलो मनसा धाम याहा होती मुरादे पूरी
हरिद्वार में आने वाले सुन बिन दर्शन है यात्रा अधूरी
पेहले जाना हरी की पोडी मन में रख के माँ की भगती
जाके लगाना गंगा डुबकी फिर पावन तन मन करना
कोई पैदल मन्दिर जाए कोई झूले में बेठ के आये
जिसकी जैसे मन में शरद वैसे माँ के मंदिर जाए
माँ मनसा अपने भगतो से रखती कभी न दुरी
करते याहा पे जो विनती दुखड़े मनसा माँ सुनती
माँ की दया जिसे मिलती उसका जीवन सफल हो जाए
आती भगतो की टोली मेरी मनसा माँ भोली
भर देती सब की झोली
माँ का जैकारा सब लगाये
मैं भी हु शरण आज तेरी माँ बरसा दे किरपा थोड़ी