हरि तुम बहुत अनुग्रह कीन्हों

हरि तुम बहुत अनुग्रह कीन्हों
साधन धाम बिबुध दुर्लभ तनु मोहि कृपा कर दीन्हों

कोटिहुँ मुख कह जात न प्रभु के एक-एक उपकार
तदपि नाथ कछु और माँगिहौं दीजे परम उदार

विषय बारि मन मीन भिन्न नहीं होत कबहु पल एक
ताते सहौं विपति अति दारुण जनमत जोनि अनेक

कृपा डोर बनसी पद अंकुश परम प्रेम मृत्यु चारो
एहि बिधि बेधि हरहु मेरो दुख कौतुक नाम तिहारो

है श्रुति विदित उपाय सकल सुर केहि केहि दीन निहोरै
तुलसीदास यहि जीव मोह रजु जेहि बाँध्यौ सोई छोरै

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