तेरे भरोसे बैठो संवारे बोल कहा मैं जाऊ
मालिक है जब तू ही मेरा किस से आस लगाऊ,
कौन सा एसा कर्म है मेरा जो दुःख मुझे सताते है
केहते है ऋषि मुनि और ग्यानी सुख दुःख आप के जाते है,
माने न ये मनवा मेरा कैसे धीर बंधाऊ,
मालिक है जब तू ही मेरा किस से आस लगाऊ,
भाई बंधु रिश्ते नाते सुख में साथ निभाते है
बदल गए हालत जो मेरे नजर नही वो आते है,
इक भरोसा तेरा मुझको हर पल संग मैं पाऊ,
मालिक है जब तू ही मेरा किस से आस लगाऊ,
छोड़ के झूठे बंधन सारे तेरी शरण में आया
ना काबिल था इन चरणों के फिर भी गले लगाया,
ऐसी किरपा करी गोपाल पे तेरी ही महिमा गाऊ,
मालिक है जब तू ही मेरा किस से आस लगाऊ,