आज हरी आये, विदुर घर पावना॥
आज हरी आये, विदुर घर पावना॥
विदुर नहीं घर मैं विदुरानी ,आवत देख सारंग प्राणी ।
फूली अंग समावे न चिंता ॥ ,भोजन कंहा जिमावना ॥
केला बहुत प्रेम से लायीं, गिरी गिरी सब देत गिराई ।
छिलका देत श्याम मुख मांही ॥,लगे बहुत सुहावना,
इतने में विदुरजी घर आये ,खरे खोटे वचन सुनाये ।
छिलका देत श्याम मुख मांही ॥,कँहा गवांई भावना,
केला लीन्ह विदुर हाथ मांही,गिरी देत गिरधर मुख मांही ।
कहे कृष्ण जी सुनो विदुर जी ॥,वो स्वाद नहीं आवना,
बासी कूसी रूखी सूखी,हम तो विदुर जी प्रेम के भूखे ।
शम्भू सखी धन्य धन्य विदुरानी ॥,भक्तन मान बढावना,