भजमन राम रे दीवाना नही तेरे भ्रम का नही ठिकाना
भ्रम का नही ठिकाना रे झूठा है नेह लगाना
भजमन राम रे दीवाना नही तेरे भ्रम का नही ठिकाना
कौन तेरा है तू किस का धन योवन सब ना निशकारे,
छोड़ कमानी का चस्का रे यही है नरक निशाना
भजमन राम रे दीवाना नही तेरे भ्रम का नही ठिकाना
भाई बंधू पुत्र सनेही यम के दूत बनेगे यही,
जिसे कहे तू मेरा मेरा वो ही फुके तन तेरा
भजमन राम रे दीवाना नही तेरे भ्रम का नही ठिकाना
भाव सागर से तरना चाहे पी ले प्याला हरी रस का रे,
प्रेम मगन हो ये दास केहत है फिर नही आना जाना
भजमन राम रे दीवाना नही तेरे भ्रम का नही ठिकाना