काढ दे मसानी भुत घनी दुख पाई मैं
कोई कहे भुत कोई केह से कनेड़े
दो दो किल्लो बैठी बैठी खा जू सु पेडे,
सासु मारे बोली घनी चतुरु लुघाई से
काढ दे मसानी भुत घनी दुख पाई मैं
गिरती पडती आई रे भवन में
आग लाग री मेरे ऋ भदन ने
शाने और घोपेया ने घनी ही छकाई रे
काढ दे मसानी भुत घनी दुख पाई मैं
मात मसानी मेरा मान ले ऋ केहना,
चोहराए पे धर दिया तेरा गेहना
मंदिर के मा देदी तेरी भेट लाइ मैं
काढ दे मसानी भुत घनी दुख पाई मैं
ॐ परकाश बड़ा रे परचारी,
कर्म वीर से तेरा ही पुजारी
तेरी दया हुई जान जंक बिताई मैं
काढ दे मसानी भुत घनी दुख पाई मैं