नव विक्रमी संवत

नव विक्रमी संवत

विक्रमी संवत् नवरात्र की, खुशी सब को अपार है।
शरधा भक्ति प्रेम से हमने, मनाना यह त्योहार है।।

विश्व भर में नव संवत् का, होता हर्षोल्लास है।
मंदिर मंदिर घर घर होता, ज्योति का प्रकाश है।।
ब्रह्मा इस दिन से ही कीन्हीं, रचना यह संसार है - विक्रमी

संयम अरु संकल्प से हमने, शास्त्र धर्म निभाना है।
बड़ी शांन से, नव संवत्, नवरात्रि पर्व मनाना है।।
घर घर भगवा ध्वज लहराकर, बोलना जै जैकार है-विक्रमी

एकजुट होकर हमें हर, मुश्किल करनी आसान है।
देश धर्म समाज विश्व का, करना हमें कल्याण है।।
हिन्दु संस्कृति अरु सभ्यता का, उत्तम हर संस्कार है-विक्रमी

'सर्वे भवन्तु सुखिना' का वर, मां दुर्गा से पाना है।
'मधुप 'सनातन धर्म मर्यादा, को हर हाल निभाना है।।
वेद पुराण रामायण गीता, का करना प्रचार है - विक्रमी

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