मन है व्याकुल नैन से जल है
कैसी कठिन विधाई हो
सूरज के संग डूब रहा मन
कैसी वेला आई
कृष्ण की बाते कृषण की लीला जाए न बिसराई
बाबा बाबा की बेह प्रतिध्वनी
प्रति पल पड़े सुनाई,
कडवे विष से भी ये बड कर कडवी येह सचाई हो
जिस के मोह में सब कुछ भुला थी बेह वसतू पराई वो