मेरे साईं की है चावडी

मेरे साईं की है चावडी यहाँ बैठ ते थे वो शाम को
कभी अल्लहा अल्लहा बोलते कभी जपते थे श्री राम को,

कर पास दिल की थी दूरियां हट नफरतो के वो रास्ते,
दिया प्यार का दीपक जगा मेह्काया शिर्डी के धाम को
मेरे साईं की है चावडी यहाँ बैठ ते थे वो शाम को

है जुदा जुदा ये शरीर सब पर खून सब का एक है
क्यों बट रहे हो अलग अलग पहचान लो इंसान को
मेरे साईं की है चावडी यहाँ बैठ ते थे वो शाम को
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