जाने कितनो की किस्मत वहां जाके संवरी है
तिहुँ लोक में कोई और नहीं मेरे बाबा की खाटू नगरी है
जबसे मैं खाटू जाने लगा बदली है मेरी ये ज़िन्दगी
बाबा ने अपनी शरण में लिया चरणों की मुझको मिली बंदगी
उलझन हो जचाहे जैसी यहाँ आके सुलझी है
तिहुँ लोक में कोई और नहीं मेरे बाबा की खाटू नगरी है
खाटू की भूमि पावन बड़ी करती है साड़ी सृष्टि नमन
बाबा का दर्शन पाने से पावन हो जाता तन और मन
कुछ बात खाटू जी में साड़ी दुनिया उमड़ी है
तिहुँ लोक में कोई और नहीं मेरे बाबा की खाटू नगरी है
जिसका सहारा कोई न यही पग पग पे जिसके दुश्मन खड़े
बेबस बेचारे मजबूर जो उनकी लड़ाई बाबा लाडे
मोहित भक्तों की बगिया यहाँ खुशियों से निखरी है
तिहुँ लोक में कोई और नहीं मेरे बाबा की खाटू नगरी है
जाने कितनो की किस्मत। ......................