मैं मीरा दीवानी हु दीवानी मैं श्याम की

जब से चाहा तुझको मोहन रही न मन में कोई कमाना
क्या करती मैं जग के साधन मन में जब बस गई साधना
नषर है जब सारी दुनिया तो दुनिया किस काम की
मैं मीरा दीवानी हु दीवानी मैं श्याम की

आखर आखर जोड़ जोड़ कर गीत गीत में श्याम लिखा
भक्ति भाव में मन यु डूबा तन को अक्षर धाम लिखा
राज मेहल में जब जब भेजे पीने को विष के प्याले
मैंने हर प्याले के उपर मोहन तेरा नाम लिखा
गाते गाते गीत मिलन के सुध विसरी आराम की
मैं मीरा दीवानी हु दीवानी मैं श्याम की

जग के सब सवार्थ के अंधे मन की पीड़ा जाने कौन
असुवन सींची प्रेम वेळ के पुष्पों को पेहचाने
मन का सब सुख चैन जल गया सांसो के दावान में
मन बेरागी जले रात भर बाट कहू तो माने कौन
लोभ मोह मद दमद जले सब जल गई दरुशना काम की
मैं मीरा दीवानी हु दीवानी मैं श्याम की

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