तन की चादर पुरानी हुई बाबरे

तन की चादर पुरानी हुई बाबरे
अब नया रंग चढ़ाने से क्या फायदा,
कर यतन कर्म का दाग धोया नहीं
रोज गंगा नहाने से क्या फायदा,

कर्म दुनिया से अपने छुपा जाएगा
उनकी नजरों से बचकर कहां जाएगा
कर्म जैसा किया वैसा भरना पड़े
दुख के आंसू बहाने से क्या फायदा
तन की चादर पुरानी हुई बावरे अब नया रंग........

घर गृहस्थी में ईश्वर भजन ना करें
भोगी हो करके भोगों का चिंतन करें
मन से माया का पर्दा हटाया नहीं
रोज माला घुमाने से क्या फायदा
सोने की चादर पुरानी हुई बावरे अब नया रंग.......

अपनी हस्ती को जिसने मिटाया नहीं
प्रेम भक्ति की मस्ती में  खोया नहीं
योग धारण किया शुभ कर्म ना किया
खुद की पूजा कराने से क्या फायदा
तन की चादर पुरानी हुई बावरे अब नया रंग.........

भार दुनिया का जिसके सहारे चले
उनके आगे किसी का भी बस ना चले
आना जाना तो दुनिया का दस्तूर है
मोह ममता में फंसने से क्या फायदा
तन की चादर पुरानी हुई बावरे अब नया रंग चढ़ाने से क्या फायदा
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