युग युग बीते लेते लेते साईं नाम तुम कब बुलाओ गे अपने धाम,
जीने में अब कोई अर्थ ना रहा लगे सारा जीवन वेअर्थ ही रहा,
मतलबी जहान में मेरा नही कोई कम ,
तुम कब भुलाओ गे अपने धाम....
अपनों ने हमको समजा ना अपना गेरो के सहारे जीएगे अब ना,
वैसे भी यह ज़िन्दगी की ढल चुकी है शाम,
तुम कब भुलाओ गे अपने धाम.....
मेरा यह जीवन तुज्को है अर्पण तेरे दवार पर काटे बाकि कुछ शन,
साईं तेरा दवार ही आखरी हो मक़ाम,
तुम कब भुलाओ गे अपने धाम.......