साई के दरबार में जब गया मैं पहली वार था,
बाबा के दरबार में जब गया मैं पहली वार था,
मेरे लिए वो दिन तो जैसे सब से बड़ा त्यौहार था ,
साई के दरबार में जब गया मैं पहली वार था,
साई का दर्शन पा के मेरे नैन दोनों छलके थे,
चैन मिला था मन को ऐसा भोज हुए सब हल्के थे,
बड़े सुहाने पल थे जिस में साई का हुआ दीदार था,
साई के दरबार में जब गया मैं पहली वार था,
खुले आकाश में खुलके जैसे उड़ता कोई परिंदा हो,
जीवन की हर आशा जैसे फिर से हो गई जिन्दा हो,
ऐसा अनुभव पा के मेरे मन को मिला करार था,
साई के दरबार में जब गया मैं पहली वार था,
शिरडी जाके पाया मैंने अन्दन बड़ा निराला था,
आंखे बंद करके देखा भीतर बड़ा उजाला था,
मिट गई हर इक शंका मेरी दूर हुआ अन्धकार था,
साई के दरबार में जब गया मैं पहली वार था,
सोचता रहता मैं था सागर साई शिरडी होगी कैसी,
जा कर देखा तो मैं समजा नगरी कोई न होगी ऐसी,
धरती ऊपर स्वर्ग वसा है देखा चमत्कार था,
साई के दरबार में जब गया मैं पहली वार था,