कैसा रच दिया खेल मेरे भोले भंडारी ने
कैसा रच दिया कैसा रच दिया
कैसा रच दिया खेल मेरे भोले भंडारी ने
निर्धन को धन वान बना दे
मुर्ख को विद्वान बना दे
किया काग हंस का मेल मेरे भोले भंडारी ने
कैसा रच दिया खेल मेरे भोले भंडारी ने
अगनी गगन जल पवन बनाये
पृथ्वी पे आकाश ठेहराए
उल्जा दी किसी सकेल मेरे भोले भंडारी ने
कैसा रच दिया खेल मेरे भोले भंडारी ने
जटा में गंगा बड़ी सुख कारी सिर पे लटा लपेटे सारी
श्रृष्टि का रच दिया खेल मेरे भोल भंडारी ने
कैसा रच दिया खेल मेरे भोले भंडारी ने