जब याद तुम्हारी आती है मेरा जी भर भर आता है,
मैं पल पल तुम्हे भुलाती हु तुम आते हो मुस्काते हो,
मुस्काकर फिर छिप जाते हो क्या यही तुम्हे सुहाता है,
ये कैसी यह निस्ठुरता है हाय कैसी यह बेदर्दी है,
या यह क्रंदन भी झूठ है जो तुम तक पहुच न पता है,
जब याद तुम्हारी आती है..................
हे प्रीतम प्रानाअधार हरे हे मोहन नन्द कुमार हरे,
एक बार तो आकर अपनालो अब तुम बिन रहा न जाता है,
जब याद तुम्हारी आती है..................
न कोई अपना है जग में न कोई पराया लगदा है,
इस दासी का तो बस केवल एक श्याम तुम्ही से नाता है,
जब याद तुम्हारी आती है .....................