अकेली गई थी ब्रिज में कोई नही था मेरे मन में
मोर पंख वाला मिल गया
नींद चुराई बंसी बजा के चैन चुराया सैन चुरा के
लगी आस मेरे मन में गई थी मैं वृंदावन में बांसुरी वाला मिल गया
मोर पंख वाला मिल गया
उसी ने बुलाया उसी ने रुलाया ऐसा सलोना श्याम मेरे मन भाया
तेरी बांकी चाल देखी तेरा मुकट भी देखा
टेढ़ी टांग वाला मिल गया
मोर पंख वाला मिल गया
बांके बिहारी मेरे हिरदये में बरसाऊ
तेरे बिन श्याम सुंदर कहा चैन पाई
लगन लगी तन मन में ढूंड रही मैं निधि वन में
गाऊये वाला मिल गया मोर पंख वाला मिल गया