लेकर खड़ी जयमाला राम को साजन मैं बनाने को,
तरसे मेरा मनवा उनकी दुल्हनिया बन जाने को
बात थी ये जनकपुर की, कैसी आई शुभ घड़ी -2
श्री राम गले में सुन मेरे साधो, कैसे आन माला पड़ी,
हम सब मिलकर आए यही बात बताने को
तरसे मेरा मन....
ऊँचे सिंहासन पर बैठे थे मेरे श्री राम जहाँ -2
सीता जी के नहीं पहुंचे थे किसी भी विधि भी हाथ वहाँ,
देख नजारा सखियाँ आई श्रीराम जी को मनाने को
तरसे मेरा मन….
सखियाँ बोली सुनो राम जी थोड़ा सा उपकार करो -2
थोड़ा झुककर सीता जी की जय माला स्वीकार करो,
छोटी पड़ती हमारी सीता तुम तक हाथ जाने को
तरसे मेरा मन……
तिरछा देखा सीता माँ ने लखन के इशारे को -2
आँखों ही आँखों में किया इशारा सीता को समझाने को,
सीता माता भाँप गई थी लखन के इशारे को
तरसे मेरा मन….
लखन राम के पास आए थे आशीर्वाद लेने को -2
लखन बेटा कह कर झुक गए आशीर्वाद देने को
जरा देर ना करी सीता ने गल जयमाला डालन को
लेकर खड़ी जयमाला राम को साजन मैं बनाने को,
तरसे मेरा मनवा उनकी दुल्हनिया बन जाने को........