तेरी खातिर कन्हैया मैं जोगन बनी,
खाक तन पर लगी की लगी रह गई......
इंतजार किया लेकिन आए नहीं,
तेरी राहों में आंखें बिछी रह गई,
तेरी खातिर कन्हैया मैं जोगन बनी,
खाक तन पर लगी की लगी रह गई......
श्याम तेरे बिना प्राण तन में रहे,
ऐसे पापी हैं अब तक यह निकले नहीं,
आया तूफान जोरों से मल्हा नहीं,
नाव मझधार में ही खड़ी रह गई,
तेरी खातिर कन्हैया मैं जोगन बनी,
खाक तन पर लगी की लगी रह गई......
मैंने सोचा था चिट्ठी लिखूं श्याम को,
पर कलम भी रुकी की रुकी रह गई,
तेरी खातिर कन्हैया मैं जोगन बनी,
खाक तन पर लगी की लगी रह गई......
छवि मोहन की मन में बसी है मेरे,
छोड़ हमको अकेले चले क्यों गए,
लौटकर फिर वह मथुरा से आए नहीं,
आस मन में लगी की लगी रह गई,
तेरी खातिर कन्हैया मैं जोगन बनी,
खाक तन पर लगी की लगी रह गई......
तुमने तारे हैं पापी अधम से अधम,
मैं हूं पापी मगर उनसे ज्यादा हु कम,
मुझसे रूठे हो क्यों यह समझ मैं गई,
मेरे पापों में कोई कमी रह गई,
तेरी खातिर कन्हैया मैं जोगन बनी,
खाक तन पर लगी की लगी रह गई......