कुलषित मन में रावण के,
उपजा एक विकार,
ज्ञानी पंडित बामन के,
परिवर्तित हुए विचार,
क्रोध कपट हुआ मन के,
दशानन का श्रृंगार,
दंभी घमंडी रावण के,
बढ़ने लगे थे अत्याचार,
पर स्त्री हरण के,
आए मन में विचार,
राम भार्या सीता हरण के,
भरे मस्तिष्क में व्यभिचार,
मर्यादा पुरुषोत्तम राम,
भये श्री हरि के अवतार,
आए धरा पर करने को,
अत्याचारी का संहार,
झूठे कपटी और दंभी का,
पार बसा ना कोई,
प्राण गंवाए रावण ने,
रघुकुल रीत सो सोई,
सत्य की जय का,
पर्व है यह विजय का,
आओ मिलकर लें प्रण,
इस दिवस पर नेक,
कबहू ना डिगे सत्य कर्म से,
भले बाधा आएं अनेक,
आओ मारें मन के रावण को,
करें निर्मल अपने विचार,
मन विजय करने से होगा,
विजय दशमी का पर्व साकार।