धुन - पुरवा सुहानी आई रे
दूल्हा बन आए, त्रिपुरारी रे,,, त्रिपुरारी ll
*हो के बैल पे सवार, पहनें सर्पों के हार ll,,
लागे सुंदर छवि प्यारी रे,,, त्रिपुरारी,
दूल्हा बन आए,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
गंगा को प्रभु जी, शीश पे धारे,
कानों में सर्पों के, कुण्डल डारे ll
*सर्पों की माला है, कण्ठ में डाला है ll,,
श्री चंद्र धारी रे,,, त्रिपुरारी,
दूल्हा बन आए,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
मरघट की राख़ को, अंग रमाए,
कंठ पे काले काले, नाग लहराए ll
*मस्तक विशाला है, त्रिनेत्र वाला है ll,,
त्रिशूल धारी रे,,, त्रिपुरारी,
दूल्हा बन आए,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
भंग धतूरे को, खाने वाला,
सब देवों में, देव निराला ll
सर्प और ततैईया है, बिच्छू बरैईया है ll,,
बाग्मबर धारी रे,,, त्रिपुरारी,
दूल्हा बन आए,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ब्रह्मा विष्णु, देव बाराती,
भूत प्रेत सब, संगी साथी ll
रूप विशाला है, सब से निराला है ll,,
राजेंद्र छवि प्यारी रे,,, त्रिपुरारी,
दूल्हा बन आए,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
अपलोडर- अनिलरामूर्तिभोपाल