चित्रकूट के वन जंगल में शबरी देखै बाट,
हे री कद आवैंगे मेरे राम…………
कदे नु देखै कदे नु देखै रस्ता रही बुहार,
हे जी कद आवैंगे मेरे राम…………
देख देख कै तोड़ै शबरी बड़बेरी के बेर,
हे जी ये खावैंगे भगवान…………
घास पूस की छोटी सी कुटिया,
जिसपै गहरी छाव, हे जी कद आकै करै आराम…………
इतनी देर में राम लखन जी आते देखे पास,
घाल गया जो दीवे मैं तेल………..
प्रेम के आंसू बहन लाग गे,
लिकडया कोन्या बोल,
शबरी पाया मैं गयी लोट…………..
चख चख बेर खिलावन लागी,
बेर ना खट्टा हो,
भगतणी करती इतना मोह………..
राम भी खावै लखन भी खावै,
यो फल घना स्वाद,
माता सुणी गयी फरियाद………….
धन्य जिंदगी हुई शबरी की,
बेडा होग्या पार,
करकै रघुवर के दीदार…………..
राम नाम की रटना ‘कमल सिंह’,
कर देती सिद्ध काम,
राम जी सबतै बड़े सुख धाम……..