रे मन हरि सुमिरन करि लीजे।
हरि को नाम प्रेमसों जपिये,
हरि रस रसना पीजै ।
हरि गुन गाइय, सुनिये निरंतर,
हरि-चरनन चित दीजै।
रे मन हरि सुमिरन करि लीजे....
हरि-भगतन की सरन ग्रहन करि,
हरि सँग प्रीत करीजै ।
हरि-सम हरि जन समुझि मनहिं मन ,
तिनकौ सेवन कीजै।
रे मन हरि सुमिरन करि लीजे.....
हरि केहि बिधिसों हमसों रीझै,
सो ही प्रश्न करीजै ।
हरि-जन हरिमारग पहिचानै,
अनुमति देहिं सो कीजै।
रे मन हरि सुमिरन करि लीजे.....
हरि हित खाइये, पहिरिये हरिहित,
हरिहित करम करीजै ।
हरि-हित हरि-सन सब जग सेइय,
हरिहित मरिये जीजै।
रे मन हरि सुमिरन करि लीजे.....