चंचल मन बेचैन.....
चंचल मन बेचैन.....बहुत था।
पर जब से तेरी शरण मिली,
हे श्याम तेरी करुणा द्रिष्टि से,
रीझे प्यासे नैन।
चंचल मन बेचैन.....बहुत था....
कृष्ण नामरस पीकर और कोई,
रस ना मन को भाये,
रसना राधे राधे रटती,
अखियां श्याम समाये,
जगबंदन श्री श्याम मुरारी,
सोलह कला प्रभु हो श्रृंगारी,
देखे बिन नहीं चैन।
चंचल मन बेचैन.....बहुत था....
ऐसे तड़प रहा था मन ये
यु मछली बिन पानी,
क्षण भंगुर का माया मुझे
लगती रही मुझे सुहानी,
मृग दृषणा में घूम रहा था
झूठे मध् में झूम रहा था,
एक से थे दिन रैण।
चंचल मन बेचैन.....बहुत था....
रैण अँधेरी दिशा का ब्रम्ह था
पथरीली थी राहे,
पग पग पर ठोकर खाता था
भरती आत्म आहें,
पर जब तुमने बांह संभाली
चमक उठी सूरज की लाली,
मिटा अँधेरा गैन।
चंचल मन बेचैन.....बहुत था....
चंचल मन बेचैन.....बहुत था।
पर जब से तेरी शरण मिली,
हे श्याम तेरी करुणा द्रिष्टि से,
रीझे प्यासे नैन।
चंचल मन बेचैन.....बहुत था....