माँ के चरणों मे जग समाया है।
माँ के बिन लागे जग पराया है।।
बड़ा पावन पुनीत माँ का दर।
हमने भक्तो को कहते पाया है।।
आये धनवान या कोई निर्धन,
सबको मिलता है यहाँ अपनापन।
उसके दर्शन से मात्र ये भक्तो ।
दूर हो जाये तेरी हर उलझन।।
माँ के दर प्यार मिले यहां हर फूल खिले।
माँ की ममता का सबपे साया है।।
माँ के चरणों मे जग समाया है।
माँ के बिन लागे जग पराया है।।
माँ अंधेरों में रोशनी करदे।
जितनी चाहे बो झोलियां भरदे।
जितना जी चाहे माँगलो माँ से।
माँ मुरादे तेरी पूरी करदे।।
चलो माँ के दर पे चलो ज़रा न देर करो
शेरावाली ने अब बुलाया है।।
माँ के चरणों मे जग समाया है।
माँ के बिन लागे जग पराया है।।
बीच मझदार में पड़े बेड़े
इसी माँ ने उन्हें निकले हैं।
गमो से घिरने वाले भक्तों को
इसी माँ ने उन्हें सम्हाले है
कहे राजेन्द्र सुनो
माँ के सब भक्त बनो
मोह माया में क्यों रिझाया है।।
माँ के चरणों मे जग समाया है।
माँ के बिन लागे जग पराया है।।
गीतकार/गायक-राजेंद्र प्रसाद सोनी