हे कान्हा मोहे, बहुत सतावत तोरी अखियां
हे कान्हा मोहे, बहुत सतावत तोरी अखियां
चहुँ दिस में कहूँ ठौर नाही मोहे , मोरे पीछे पीछे आवत तोरी अखियां,
हे कान्हा मोहे, बहुत सतावत तोरी अखियां II
मेरो मन मंदिर में ऐसो बसो है , मोहे हर पल लुभावत तोरी अखियां,
हे कान्हा मोहे, बहुत सतावत तोरी अखियां II
त्रिभुवन में कोई ऐसो नाही, जैसो तीर चलावत तोरी अखियां,
हे कान्हा मोहे, बहुत सतावत तोरी अखियां II
भवसागर में भटक रहा हूं, काहे नाही पार लगावत तोरी अखियां,
हे कान्हा मोहे, बहुत सतावत तोरी अखियांI
भजन रचना : ज्योति नारायण पाठक