मोरी पीड़ हरो तुम बिन कौन हमारो।।
द्रुपद सुता के चीर बढ़ायो ।
पट के बीच पधारियो,
ग्राह से गज़ के फंड छुडायो
नंगे पांव पधारियो।
मोरी पीड़ हरो तुम बिन कौन हमारो।।
जन्मों की श्रापित नारी को
प्रभुवर तुमने तारयो।
दण्डक वन प्रभु पावन कोन्हों,
ऋषियन त्रास मिटायो।।
मोरी पीड़ हरो तुम बिन कौन हमारो।।
भक्त प्रह्लाद के प्राण बचायो,
हिरण्यकश्यप को मार्यो,
राजेन्द्र तुमसे भिक्षा मांगे
अबकी मोहे तारो ।।
मोरी पीड़ हरो तुम बिन कौन हमारो।।
गीतकार/गायक-राजेन्द्र प्रसाद सोनी