बृज धाम जाने वाले मेरा पैगाम लेजा।
संदेसा टूटे दिल का कान्हा के नाम लेजा।।
पहले तू मेरे श्याम के चरणों में सर झुकाना।
कदमो में बेठ करके मेरी दास्ताँ सुनाना।
शायद वो मान जाएं, किस्सा तमाम लेजा...
कान्हा के द्वार जाके देना मेरी दुहाई।
मुझ बेगुनाह को छलिया कैसी सज़ा सुनाई।
शायद वो माफ़ करदे, आँसू तमाम लेजा...
मोहना का दिल न पिघले सुन कर मेरी कहानी।
कहना की श्याम भेजी तेरे दास ने निशानी।
शायद कबूल करले, आहें तमाम लेजा...
कान्हा जो तेरे दिल में गर प्यार का है सागर।
भारद्वाज की क्यों ख़ाली राखी है तूने गागर।
दो बूँद डालदे फिर, साँसे तमाम लेजा...
बृज धाम जाने वाले….....