अकेली गई थी ब्रिज में कोई नही था मेरे मन में,
मोर पंख वाला मिल गया....
नींद चुराई बंसी बजा के चैन चुराया सैन चुरा के,
लग आस मेरे मन में गई थी,
वृंदावन में बांसुरी वाला मिल गया,
मोर पंख वाला मिल गया....
उसी ने बुलाया उसी ने रुलाया,
ऐसा सलोना श्याम मेरे मन भाया,
तेरी बांकी चाल देखी तेरा मुकट भी देखा,
टेढ़ी टांग वाला मिल गया,
मोर पंख वाला मिल गया....
बांके बिहारी मेरे हिर्दय में वस जाओ,
तेरे बिन श्याम सुंदर कहा चैन पाऊ,
लगन लगी तन मन में ढूंड रही मैं निधि वन में,
गउएँ वाला मिल गया मोर पंख वाला मिल गया.....