संकट में झुँझन वाली की,
सकलाई देखी है,
मेरे संग संग चलती,
दादी की परछाई देखी है,
मेरे संग संग चलती,
दादी की परछाई देखी हैं....
कोई राह नज़र ना आए,
जब छाए गम के बादल,
सर पे महसूस किया है,
मैंने दादी का आँचल,
माँ की चुनड़ी मेरे सर पे,
माँ की चुनड़ी मेरे सर पे,
लहराई देखी हैं,
मेरे संग संग चलती,
दादी की परछाई देखी हैं....
ये है तक़दीर हमारी,
जो तेरी शरण मिली है,
क़िस्मत से तू हम भक्तो की,
दादी तू कुलदेवी है,
मेरे सुख दुःख ने हरदम,
मेरे सुख दुःख ने हरदम,
माँ आई देखी हैं,
मेरे संग संग चलती,
दादी की परछाई देखी हैं.....
तूने तो दिया है दादी,
मुझको औकात से बढ़कर,
‘सौरभ मधुकर’ की तूने,
रख दी तक़दीर बदलकर,
हमने माँ के दरबार की,
हमने माँ के दरबार की,
सच्चाई देखी हैं,
मेरे संग संग चलती,
दादी की परछाई देखी हैं.....