तर्ज - कव्वाली
माँ रात को सपने में श्री बाबोसा आये,
फिर प्यार से वो सर पे मेरे हाथ घुमाये,
माँ रात को सपने में......
कल रात मैंने देखी उनकी प्यारी सी सूरत,
उसे देखने को माँ मेरा अब जी ललचाये,
माँ रात को सपने में......
एक बार मुझे ले चल श्री बाबोसा के दर पे,
ये सपना सच हो जाये, मुझे दर पर जो जाये,
माँ रात को सपने में......
ओ मैया मेरी सुनले कल रात का नजारा,
सिरहाने वो खड़ा था माँ छगनी का दुलारा,
सर पे मुकुट था जिनके हाथो में घोटा धारे,
देखा है जबसे उनको ये नैन हुए मतवारे,
एक टक निहार रहे थे, उनको ये मेरे नैन,
अब दर्श बिना उनके, मुझे आये न चैन,
माँ रात को सपने में......