श्री राम दिवाना जा रहा था

श्री राम दीवाना जा रहा था हवा के झोके से,
तीर भरत ने मार दिया हाय रे धोखे से,
मुख से निकला जय सिया राम जय सिया राम राम राम.....

श्री रामचंद्र और जानकी को अपने दिल में बसा लिया,
इतने भारी पर्वत को हाथो में उठा लिया,
श्री राम नाम का ध्यान किया हवा के झोके से,
तीर भरत ने मार दिया हाय रे धोखे से,
हो मुख से निकला जय सिया राम.....

स्वामी मेरे रामचंद्र और माता मेरी जानकी,
अपने दिल में बसा रखी है मूरत सीताराम की,
पर्वत को उठा संधान किया हवा के झोके से,
तीर भरत ने मार दिया हाय रे धोखे से,
हो मुख से निकला जय सिया राम.....

बूटी लेकर आगये किर्पा से श्री राम की,
जय जय सब करने लगे महावीर हनुमान की,
रघुकूल पे पड़ा एहसान किया हवा के झोके से,
तीर भरत ने मार दिया हाय रे धोखे से,
हो मुख से निकला जय सिया राम.....

प्रेम भक्ति और भाव से जो भी इनका ध्यान धरे,
हो जाता कल्याण उनको रक्षा स्वयं हनुमान करे,
भगतो को अभय वरदान दिया हवा के झोके से,
तीर भरत ने मार दिया हाय रे धोखे से,
हो मुख से निकला जय सिया राम.....
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