वादा करो मनमोहन लौट के कब आओगे,
खाओ तुम मेरी कसम भूल तो ना जाओगे.....
चांदनी सुहानी रात में याद आए बरसात में,
तेरे बिन मनमोहन कैसे जिए दिन रात में,
चांदनी सुहानी रात याद आए बरसात,
वादा करो मनमोहन लौट के कब आओगे.....
सावन का महीना था कोई नहीं अपना था,
फिर भादो मास आया तेरी याद ने सताया,
कुंवार अब हुआ जारी कोई ना खबर आई,
वादा करो मनमोहन लौट के कब आओगे.....
कार्तिक की कह गए थे जो वादा कर गए थे,
अब अगहन मास आया फुल सर्दी ने सताया,
पूस मास में डरे थे सारी रात हम जगे थे,
वादा करो मनमोहन लौट के कब आओगे.....
माह में पड़ी है सर्दी आया ना वह बेदर्दी,
फागुन मास रंग बरसे मिलने को जिया तरसे,
आया चैत का पसीना मुश्किल हुआ है जीना,
वादा करो मनमोहन लौट के कब आओगे.....
वैशाख बदला मौसम तब ही मिले थे हम तुम,
लगा जेठ का दशहरा आने लगे थे सपने,
आषाढ़ आखिरी था वह साल आखरी था,
वादा करो मनमोहन लौट के कब आओगे.....